लोगों को ठंडा रखने वाले कपड़े की हुई खोज

स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक से बने किफायती रेशों का विकास किया है. जिसे बुनकर पहनने वाले कपड़े बनाये जाये तो वे हमारे शरीर को अधिक ठंडक प्रदान करेंगे.
 अभी हम जो कपड़े पहनते हैं, उसकी तुलना में ये ज्यादा आरामदेह होंगे. अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि इस तरह के फैब्रिक वैसे कपड़ों के निर्माण में सहायक सिद्ध होंगे, जो जलवायु में उष्णता बढ़ने पर भी हमारे शरीर को ठंडा रखेगे. अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर यी कुई ने कहा, ‘लोग जहां रहते हैं या जहां काम करते हैं, उन परिसरों को ठंडा रखने के बजाय हम लोगों को ठंडा रखें तो इससे ऊर्जा की बचत होगी.’  नये तरह का यह रेशा कम-से-कम दो तरीकों से शरीर की गर्मी को उत्सर्जित करेगा और सूती कपड़ों की तुलना में इससे पहनने वाला करीब चार डिग्री फारेनहाइट ठंडा महसूस करेगा.
इस अध्ययन का प्रकाशन साइंस जर्नल में हुआ है.



सौरमंडल में ‘बृहस्पति के उत्तरी ध्रुव जैसा कुछ भी नहीं’


नासा के जूनो अंतरिक्ष यान ने बृहस्पति के उत्तरी ध्रुव की पहली तस्वीरें भेजी हैं. ये तस्वीरें कुछ ऐसे तूफानों और मौसम संबंधी गतिविधियों को दिखाती हैं, जो हमारे सौर मंडल के गैसीय ग्रहों में से किसी भी ग्रह पर इससे पहले नहीं देखी गई हैं.

ये तस्वीरें सौर ऊर्जा से संचालित अंतरिक्ष यान ने ग्रह की उस पहली यात्रा में ली हैं, जब उसके यंत्र चालू किए गए थे.

बृहस्पति के चक्करदार बादलों से लगभग 4200 किलोमीटर ऊपर आए अंतरिक्ष यान जूनो ने 27 अगस्त को कक्षा की 36 उड़ानों में से पहली उड़ान को सफलतापूर्वक पूरा किया.

अमेरिका में साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में जूनो के प्रमुख जांचकर्ता स्कॉट बोल्टन ने कहा, ‘बृहस्पति के उत्तरी ध्रुव की पहली झलक मिली. यह कुछ ऐसा दिखता है, जिसे हमने पहले कभी न तो देखा है और न ही इसकी कल्पना की है.’ बोल्टन ने कहा कि यह ग्रह के अन्य हिस्सों की तुलना में नीला है. वहां बहुत से तूफान हैं. इस तस्वीर से बृहस्पति को मुश्किल ही पहचाना जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘हमें बादलों की छाया के संकेत मिल रहे हैं. इससे संभवत: ये संकेत मिल रहे हैं कि बादल अन्य चीजों की तुलना में जरा ऊंचाई पर हैं.’

नासा ने कहा, बृहस्पति के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की पहली तस्वीरों में जो सबसे अहम जानकारी मिली है, उसे जूनोकैम इमेजर देख नहीं सका.

बोल्टन ने कहा, ‘शनि का उत्तरी ध्रुव पर एक षटकोण है. बृहस्पति पर ऐसा कुछ नहीं है, जिससे कोई समानता रखता हो. हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह वास्तव में अलग है. इसके अनूठेपन का अध्ययन करने के लिए हमें 36 अन्य उड़ानों का अध्ययन करना है.’


अगले 20 सालों में देख सकेंगे असली एलियन!

वाशिंगटन। अंतरिक्ष विज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के अलावा भी ब्रह्मांड के दूसरे कई ग्रहों में जीवन हो सकता है और संभव है कि इसका पता अगले 20 सालों में लगाया जा सकेगा। अमेरिका में कैलिफॉर्निया के एसईटीए संस्थान के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक सेथ शोस्टक ने कहा कि सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा दर्जनों और ग्रह हो सकते हैं, जिनमे जीवन हो सकता है।< उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि इन ग्रहों का पता लगाना अच्छी बात होगी। अगले 20 सालों में ऐसा हो सकता है, पर यह वित्तीय सहायता पर भी निर्भर करेगा। उन्होंने कांग्रेसनल साइंस कमेटी पर हाल ही में अपनी खोज साक्षा की। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मंगल और चंद्रमा हैं। कुछ वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों में जीवन की मौजूदगी का पता लगाने के लिए इन ग्रहों के वातावरण और वायुमंडल का स्कैन कर रहे हैं, जिससे वातावरण में ऑक्सीजन और मीथेन गैसों की मौजूदगी का पता चल सके। डिस्कवरी न्यूज के मुताबिक कुछ वैज्ञानिक अतिआधुनिक तकनीक के माध्यम से संभावित एलीयनों द्वारा भेजे जाने वाले रेडियो तरंग और दूसरे संकेतों का भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। शोस्टक ने कहा कि सच्चाई यह है कि हमें कुछ पता नहीं चल पाया है, इसका मतलब यह नहीं है कि कुछ है ही नहीं। हमने अभी खोज शुरु ही की है।

आकाश गंगाओं का विशाल समूह खोजने के करीब पहुंचा नासा

वाशिंगटन। ग्रहों, क्षुद्र ग्रहों और धूमकेतुओं से लैस हमारे सौर मंडल के जैसे करोड़ों सौर मंडल हमारी मिल्की वे (आकाश गंगा) में मौजूद हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि आकाश गंगाओं के समुद्र में ये सौर मंडल संभवत: एक बूंद के जैसे हैं। मिशन ऑल स्काई इन्फ्रारेड मैपिंग ने एक सुदूरवर्ती आकाश गंगा समूह का पता लगाया है और उम्मीद है कि ऐसे हजारों और समूहों का पता चल सकेगा। ये विशाल ढांचे आपस में गुरुत्व बल से जुड़े हजारों आकाश गंगाओं का संग्रह हैं। खगोलीय पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इन आकाश गंगाओं की उत्पत्ति ब्रह्मांड के शुरुआती दिनों में पदार्थ के बीज से हुई और स्फीति नाम की प्रक्रिया में इनका तीव्र विकास हुआ। नासा के एक बयान के मुताबिक अनुसंधान कार्यक्रम की अगुआई करने वाले फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के एंथोनी गोंजालेज ने कहा है कि ब्रह्मांडविज्ञान में सबसे अहम सवाल यह है कि किस तरह विश्व में पदार्थ के बंटवारे में हुई पहली टक्कर और हरकत तेजी से आज नजर आने वाली विशाल आकाश गंगाओं के ढांचे के निर्माण में बदल गई। गोंजालेज ने आगे कहा कि डब्लूआईएसई की मदद से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर आकाश गंगाओं के समूह का पता लगने के बाद हम विश्व के आरंभिक स्फीति अवधि के सिद्धांत की जांच कर सकेंगे। इन्फ्रारेड तरंगधैर्य (वेवलेंथ) से दो बार सर्वेक्षण करने के बाद डब्लूआईएसई ने संपूर्ण आकाश के सर्वेक्षण का काम 2011 में पूरा किया। 'ऑलवाइज' नाम की नई परियोजना के तहत अगली पीढ़ी के ऑल स्काई चित्र पूर्व में जारी चित्रों से महत्वूर्ण रूप से अधिक संवेदनशील होंगे और 2013 के अंत तक सभी के लिए उपलब्ध हो सकेंगे।